संयोजक, लोकतांत्रिक जन पहल बिहार पटना,
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बिहार में गंगा और अन्य नदियों में जो एकाएक पानी बढ़ा है उसके पीछे मुख्य कारण ग्लेशियर का अपेक्षाकृत तेजी से पिघलना है। क्योंकि मेरी जानकारी में गंगा के कैचमेंट एरिया में कहीं भारी वर्षा नहीं हुई है।
कोशी और गंडक में भी मेरी जानकारी के मुताबिक उतना पानी नहीं है।
फरक्का बराज का बनना बिहार और झारखंड के हित में नहीं है। हमलोग इसके विरोधी रहे हैं। लेकिन फरक्का बराज बनाने के पीछे मुख्य कारण कलकत्ता पोर्ट को चालू रखना है। कलकत्ता पोर्ट को चालू रखने के लिए चालिस हजार क्यूसेक पानी चाहिए जबकि जानकारी के मुताबिक गंगा में अभी शायद पंद्रह लाख क्यूसेक पानी है।
ग्लेशियर के पिघलने का मुख्य कारण क्लाइमेट चेंज है। लेकिन कुछ हलकों में यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि चीन ने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके आर्टिफिशियल तरीके से ग्लेशियर को तेजी से पिघलाने का काम किया है। मैं नहीं जानता हूं कि इस आरोप की सच्चाई क्या है और इसमें चीन का क्या हित है। क्लाइमेट चेंज का मुद्दा अब चूंकि वैश्विक रूप धारण कर चुका है और भारत और दुनिया का पूंजीपति वर्ग और पावर इलिट अपने निहित स्वार्थ में बुनियादी तौर पर इस खतरे के प्रति जानबूझ कर सचेत नहीं है इसलिए चीन के खिलाफ आरोप अपनी नाकामी को छुपाने का भी हथकंडा हो सकता है।
फरक्का के चलते बिहार के भागलपुर और झारखंड के साहेबगंज और पाकुड़ क्षेत्र में बैंक वाटर के चलते बाढ़ की स्थिति है। लोगों की भारी तबाही है।
हमारे एक जनप्रतिबद्ध पत्रकार मित्र साइसुद्दीन शेख जो फरक्का को लेकर लगातार सजग रहते हैं उनसे मिली जानकारी के मुताबिक बंगलादेश की ओर जाने वाली गंगा के प्रवाह में बराज के कुल 109 गेट में 105 गेट खुला है। कुछ गेट 75 से 80 प्रतिशत तथा कुछ 50 से 60 प्रतिशत तक खोले गए हैं। हल्दिया की ओर प्रवाह में कुल 10 गेट हैं जो अंशत: खोला गया है। इसे 40 प्रतिशत प्रवाह तक नियंत्रित किया गया है। क्योंकि पूरा खोलने पर कोलकाता शहर के भी डूबने की संभावना है। इसलिए उतना ही खोला जाता है जितना कोलकोता पोर्ट की अनिवार्यता है।
कुल एक लाख दस हजार क्यूसेक अतिरिक्त पानी अभी बराज के गेटों को खोलकर छोड़ा जा रहा है।
बराज के पास पानी खतरे के निशान से दो फुट उपर तक चला गया है। बाढ़ग्रस्त इलाकों के लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव के चलते तथा बराज पर दबाव को कम करने के लिए गेट खोले गए हैं।
लेकिन मेरा मानना है कि नदियों और पर्यावरण पर जो संकट है उसको लेकर आवाज तो उठती है लेकिन उसे पॉलिटिकल एजेंडा अब तक नहीं बनाया जा सका है। एक राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता होने के कारण मेरी नज़र रहती है। लेकिन पानी के सवालों पर प्राथमिकता के साथ काम करने वाले सहकर्मी साथियों से निवेदन है कि इसे राजनीतिक रूप से व्यापक स्तर पर उठाने की पहल करें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)