नई दिल्ली। राजस्थान के विद्वान राज्यपाल स्वर्गीय डॉ. संपूर्णानंद जी ने अपनी व्यस्तताओं के बीच मेरी चौथी पुस्तक 'इतिहास के स्फुट लेख' आदि से अंत तक पढ़ी। पूरी चीर फाड़ की और पूरे दो पृष्ठों की टंकित टिप्पणी मुझे भेजी।
भारत की राजनीति में अजातशत्रु और ईमानदारी के प्रतीक माने जाने वाले इस विद्वान राजनेता का एक नए लेखक को मार्गदर्शन देना मेरे लिए सौभाग्य ही था। मैं उनसे मिला नहीं था। केवल डाक से पुस्तक भेज दी थी। मगर उन्होंने पढ़ा और तुरन्त अपनी टिप्पणी मुझे भेज दी। आज की राजनीति में क्या ऐसा व्यवहार संभव है ? उन्होंने अपनी संतान रिश्तेदार या समर्थक के लिए कांग्रेस के संगठन और सरकार में कभी कोई पद नहीं मांगा।
वह बचपन से स्वर्गवास तक सरस्वती के पुजारी बने रहे। राज्यपाल और मुख्यमंत्री वर्षों तक रहने के बावजूद वह इतना पैसा जमा नहीं कर सके कि बुढ़ापे में वैभवपूर्ण ढंग से रहें।
राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया उनके राज्यपाल पद से सेवानिवृत होने के बाद उनकी आर्थिक मदद करते रहे। वह भोजपुरी, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी और उर्दू के विद्वान थे। यह बहुत सारे विषय की घंटों तक पुस्तकें पढ़ते थे। धर्म, अध्यात्म, विज्ञान समाजवाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, विधि, खगोलशास्त्र आदि में उनकी गहरी जानकारी थी। उनकी पुस्तकें हैं- "अन्तरराष्ट्रीय विधान, समाजवाद, गणेश ज्योतिर्विनोद' हिन्दू देव परिवार का विकास' आदि। उन्होंने उत्तरप्रेदेश में 'खुली जेल' शुरू की। नैनीताल में वेध शाला बनाई। वाराणसी में संस्कृत विश्वविद्यालय खोला। लखनऊ में मैरिस संगीत कालेज को विश्वविद्यालय बनाया। वृद्धजनों के लिए पेंशन शुरू की। लेखकों और कलाकारों को पेंशन देने की व्यवस्था की। कई मानद डॉक्टरेट मिली।
वाह...सच में परखी थे काबलियत के, कुछ तो देखा होगा पुस्तक में जो इतना interest लिया और 2 पृष्ठों की टिपणी की