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नई दिल्ली। चौथी पुस्तक लिखने के बाद मैंने राजस्थान विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. उपाधि के लिए शोध शुरू करने का निश्चय किया। इसके लिए पहले मुझे किसी विद्वान को शोध के लिए मार्गदर्शक बनाना था। मैंने 26 अप्रैल 1964 को राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास और भारतीय संस्कृति विभाग के नवनियुक्त अध्यक्ष प्रोफेसर (ड.) गोविन्द चंद्र पांडे के घर का दरवाजा खटखटाया। मैने उनसे पढ़ा नहीं था। न इसके पहले उनसे कभी मिला था। उन्होंने दरवाजा खोला और पूछा- "आप कौन ?" मैंने बताया कि "मैंने आपके विभाग से अप्रैल 1962 में एम.ए. किया है और आपको पी.एच. डी. का सुपरवाइजर बनाने के लिए फार्म पर स्वीकृति देने के लिए हस्ताक्षर कराने आया हूं।"
डा. पांडे ने मुझे बैठक में बिठाया और पूछा
"आप किस विषय पर शोध करना चाहते हैं?"
वह हर वाक्य के बाद कुछ देर के लिए चुप हो जाते थे। मैंने उत्तर दिया "राजस्थान के इतिहास पर।"
वह कुछ देर चुप रहे। फिर कहा 'मैं' उत्तराखंड में पैदा हुआ हूं और बुद्धकालीन भारत पर शोध की है। इसलिए आपका राजस्थान के इतिहास पर क्या मार्गदर्शन करूंगा। मैंने कहा- "आपको केवल दो बार
हस्ताक्षर करने हैं।पहली बार सुपरवाइज़र बनने की स्वीकृति देने के लिए। दूसरी बार शोध प्रबंध जमा करने के समय। बीच में मैं आपको कष्ट ही नहीं दूंगा। उन्होंने कहा - "जब मुझे केवल दो बार हस्ताक्षर ही करने हैं तो क्या दिक्कत है ?"
उन्होंने पहला हस्ताक्षर कर दिया। मैं छह महीने राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली और छह महीने राजस्थान के अभिलेखागार बीकानेर में उनके खुलने से बंद होने तक रिकार्ड पढ़ता रहा और थीसिस तैयार करने में लग गया।
सर प्रणाम,, आपने हमें जो ज्ञान दिया,, इस लायक बनाया कि IIMC का नाम हर जगह बुलंद कर रहे हैं,,, आपको नमन 🙏🏻🙏🏻 गुरुदेव को शत् शत् नमन
आप मेरी ओपन यूनिवर्सिटी हैं सर, वो ओपन यूनिवर्सिटी जिसकी पहल देश में हमारी सत्या मैम के प्रयासों से हुई। शिक्षक दिवस पर आपको प्रणाम गुरुदेव। आपकी गिलहरी
आज का खास दिन गुरु का आशीर्वचन एवं आशीर्वाद लेने का। ऐसे में रामजीलाल जांगिड़ साहब को उनके शिष्यों ने भी जो लिखा भेजा उसको भी हम हु-ब-हु आप तक पहुंचा रहे हैं। जांगिड़ साहिब पत्रकारिता के वे सितारे हैं जिन्होंने न जाने कितने लोगों को पत्रकार बनाया और उन्हें ज्ञान से नवाज़ा।