सकारात्मक दृष्टि से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है

जिसकी सहायता ईश्वर करता है, उसको कोई नहीं मार सकता

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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पुनरुत्थान कार्यक्रम पतन से उत्थान की तरफ, ह्रास से विकास की तरफ ले जाने वाला एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें प्रोफेसर (डॉ) सोहनराज तातेड़ ने भारतीय संस्कृति के ऐसे पक्ष को उजागर किया है, जिससे राष्ट्रोत्थान और मानव कल्याण का वृहद् रूप प्रस्तुत हुआ है। भारतीय संस्कृति ईश्वर केन्द्रित है। ईश्वर सबकुछ कर सकता है। जिस व्यक्ति की सहायता ईश्वर करता है, उसको कोई नहीं मार सकता। चाहे पूरा संसार ही उसके विरुद्ध हो जाय फिर भी उस व्यक्ति का बाल भी बांका नहीं हो सकता। सूक्ति रूप में कहां जाये तो इसको इस रूप में कहा जा सकता है- 

जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय,

बाल न बांका कर सके जो जग बैरी होय।

कोई भी व्यक्ति कर्मों से बड़ा या छोटा होता है। यदि वह अच्छा कर्म करता है, सदाचार पूर्वक व्यवहार करता है, ईश्वर पर विश्वास करता है तो निश्चित ही ईश्वर भी ऐसे व्यक्ति की सहायता करता है। किन्तु जो व्यक्ति आलसी है, दूसरों के सहारे जीवन यापन करने की परिकल्पना करता है, नास्तिक है, उसकी सहायता कोई नहीं कर सकता। ईश्वर पर आस्था रखने का अर्थ है सकारात्मक दृष्टिकोण रखना और ईश्वर पर आस्था न रखने का मतलब है निषेधात्मक दृष्टिकोण रखना। जो व्यक्ति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है हर वस्तु को विधेयात्मक दृष्टि से देखता है, वह किसी के साथ बैरभाव नहीं रखता है। 

जो व्यक्ति अपनी आत्मा के समान अन्य लागों को देखता है ऐसे व्यक्ति के लिए सम्पूर्ण पृथ्वी एक कुटुम्ब के समान होती है। उसके लिए न तो कोई छोटा होता है न तो बड़ा। हर जगह वह समानता का दर्शन करता है। दुर्घटना के समय कुछ आदमी बच जाते है और कुछ की मृत्यु हो जाती है तो प्रायः लोग यही कहते है कि जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय। मेरा मानना है कि यदि किसी इंसान में जीवित रहने की अधिक इच्छा हो, मन में ज्यादा हिम्मत हो और यदि भगवान चाहते है कि वह आदमी जिन्दा रहे, तो इस इंसान को कोई नहीं मार सकता। इस संबंध में भक्त प्रह्लाद का उदाहरण द्रष्टव्य है। प्रह्लाद के पिता हिरणाकश्यप बहुत घमंडी और अहंकारी था। वह ईश्वर में विश्वास नहीं करता था। स्वयं को ही ईश्वर मानता था। 

किन्तु प्रह्लाद ईश्वर का भक्त था और अपने पिता को ईश्वर नहीं मानता था। इससे उसके पिता बहुत नाराज हुए और प्रह्लाद को जान से मारने के लिए अनेक षड्यंत्र रचे। किन्तु प्रह्लाद की रक्षा तो स्वयं ईश्वर कर रहे थे। इसलिए हिरणाकश्यप के द्वारा रचा गया सम्पूर्ण षडयंत्र विफल हो गया और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इस दृष्टांत से  ईश्वर के अस्तित्व का पता चलता है। सैंकड़ों प्रयत्न के बावजुद भी हिरणाकश्यप प्रह्लाद को न मार सका। जिसके रक्षक स्वयं भगवान है उसको इस संसार में कोई भी मार नहीं सकता। इस दृष्टांत से यह भी ज्ञात होता है कि भक्त प्रह्लाद का ईश्वर में पूर्ण भरोसा था और उनका यही भरोसा ईश्वर को साकार रूप में प्रकट करके हिरणाकश्यप का वध करा दिया। हिरणाकश्यप नास्तिक था। 

इसी प्रकार का दृष्टांत हमें महाभारत में भी मिलता है। भरी सभा में दुर्योधन ने जब द्रौपदी का अपमान किया और अपने भाई दुस्साशन से द्रौपदी का चीरहरण करवाया तो उस समय द्रौपदी असहाय होकर भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गयी। भगवन श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी को इतना बड़ा कर दिया कि हजारो हाथियों की शक्ति रखनेवाला दुस्साशन हार मानकरके गिर गया लेकिन द्रौपदी को सभा में नग्न न कर सका, क्योंकि द्रौपदी की रक्षा स्वयं भगवान कर रहे थे। द्रौपदी को पूर्ण विश्वास था जब आदमी निःसहाय होकर ईश्वर की शरण में जाता है तो निश्चित ही ईश्वर उसकी पुकार को सुनते है और उसकी रक्षा करते है। इसी प्रकार का उदाहरण गज-ग्राह का भी है। जब तक हाथी को अपनी शक्ति पर विश्वास था तब तक वह अपना पूरा जोर पानी से निकलने के लिए लगाया। 

किन्तु जब उसने यह देख लिया कि शक्ति काम नहीं आ रही है तब वह असहाय होकर ईश्वर की शरण में गया और ईश्वर ने उसकी जान बचाई। इससे यह सिद्ध होता है कि आदमी को जब तक अपनी शक्ति पर भरोसा है, आदमी में अहंकार है तब तक ईश्वर उसकी सहायता नहीं करते। किन्तु जब आदमी निरहंकार होकर ईश्वर की शरण में जाता है तो ईश्वर उसको अपनी शरण में लेकर उसकी रक्षा करते है। इससे यह ज्ञात होता है कि अहंकार आदमी का सबसे बड़ा शत्रु है। जब तक आदमी में अहंकार रहता है सफलता उससे कोशों दूर रहती है। किन्तु जैसे ही उसके अहंकार का विनाश होता है उसकी दृष्टि सकारात्मक हो जाती है। 

जब मानव की दृष्टि सकारात्मक हो जाती है तब सफलता उसके नजदीक आ जाती है। ऐसे सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वालों की सहायता ईश्वर अवश्य करता है। अतः ईश्वर पर भरोसा रखकर के सकारात्मक दृष्टि के अनुसार चिन्तन मनन और कार्य करना चाहिए तो सफलता अवश्य मिलती है। मानव जीवन में ऐसे अनेक दृष्टांत आते है जिनकी व्याख्या प्रत्यक्ष के आधार पर नहीं की जा सकती। बीमार होने पर कभी-कभी डॉक्टर भी कहने लगते है कि इन्हें तो ईश्वर ही बचा सकता है। इससे सिद्ध होता है कि जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)