कर्नाटक सरकार द्वारा पांच गारंटियां खत्म करने की सुगबुगाहट!

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनितिक विश्लेषक 

www.daylife.page 

लगभग  के एक साल पूर्व  जब दक्षिण के राज्य  कर्नाटक में विधान सभा  चुनाव  वाले थे तो कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में मतदाताओं को पांच गारंटियां  दी थी।  राज्य के मतदातायों से यह वायदा किया गया था कि अगर पार्टी सत्ता में आई वह हर कीमत पर और जल्द से जल्द ये गारंटियां देने का काम करेगी। 

ये  गारंटियां थी :  1. सबको  200 यूनिट बिजली का बिल माफ़ . इस  गारंटी का नाम था  गृहं ज्योति था। 2. गृह  लक्ष्मी योजना के अंतर्गत  घर की मुखिया महिला  को प्रतिमाह 2000 रूपये अनुदान। 3. अन्न भाग्य योजना के अंतर्गत प्रति माह प्रति व्यक्ति 10 किलो मुफ्त चावल। 4. बेरोजगर  स्तानकों को प्रति माह  3000 रूपये और डिप्लोमाधारकों 1500 रूपये भत्ता 6. महिलाओं के सरकारी बसों में बिना टिकट यात्रा  शामिल था। 

उस समय राज्य में सत्तारूढ़ दल बीजेपी के नेताओं ने कहा था कि कांग्रेस कभी भी यह वायदा पूरा नहीं कर सकती। उन्होंने  कांगेस नेताओं से यह पूछा इन गारंटियों को पूरा करने के लिए धन कहाँ से आयेग। उन्होंने कांग्रेस से पूछा कि इन गारंटियों पर कुल कितना खर्च आयेगा। जब कांग्रेस  नेताओं ने इसका सीधा उत्त्तर नहीं दिया और कहा कि समय आने पर यह सोचा जायेगा कि इनके लिए धन कहाँ से जुटाया जायेगा। इसके जवाब में  बीजेपी नेताओं ने अपनी ओर से कुछ आंकडे जारी किये जिसके अनुसार इन गारंटियों को पूरा करने के लिए सरकार को हर साल पहले 60 हज़ार करोड़ जुटाने पड़ेंगे। राज्य की वित्त्तीय  स्थिति इतनी  मज़बूत नहीं है कि वह गारंटियों के लिए इतनी बड़ी राशि का आवंटन कर सकें। 

राज्य के  मुख्यमंत्री  सिद्धारामिया, जो उस समय विपक्ष के नेता थे तथा मुख्यमंत्री के दौड़ में सबसे आगे थे, का कहना था कि उनको पता है कि इतना धन कहाँ  से जुटाया जा सकता है। सिद्धारामिया राज्य के ऐसे नेता है जो अलग-अलग सरकारों में वित्तमंत्री के रूप ने में 15 बार बजट पेश कर चुके  है। वे अपने स्तर पर   वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ माने जाते है। पार्टी के  नेताओं को ये गारंटियां पूरा करने  का भरोसा था। 

मई 2023 के विधान सभा चुनावों में  कांग्रेस पार्टी  का यह वायदा इसे सत्ता में लाने में कामयाब रहा। पार्टी विधान सभा की  कुल 225 सीटों में से 135 सीटें जीतने में सफल रही। अपने  वायदे के अनुसार मुख्यमंत्री बनते ही  सिद्धारामिया ने पाचों गारंटियों पर काम करना शुरू कर दिया। अगले तीन महीनों में इसे लागू कर भी दिया गया। पार्टी के केंद्रीय और राज्य नेताओं  को पूरा भरोसा था कि कुछ महीनो बाद देश में होने वाले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में सभी 28 सीटों पर चुनाव जीतने में सफल रहेगी। सिद्धारामिय, जिनके पास वित्तविभाग भी था, ने एक निजी संस्थान के जरिये यह सर्वे करवाया कि आम व्यक्तियों को इन गारंटियों का लाभ मिल रहा है या नहीं। सर्वे में यह सामने आया कि  लगभग 90 प्रतिशत लोगों को इसका लाभ मिल रहा है। इसके बाद कांग्रेस पार्टी के सभी बड़े नेता इसबात से संतुष्ट थे किआने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी बीजेपी और उसके सह्योगी  दल जनता (स) को पराजित कर पायेगी। 2019 के चुनावों में जब राज्य में बीजेपी सत्ता में थी, तो वह 28 में से 26 सीटें मिली थी। कांग्रेस और जनता दल (स) को एक एक सीट मिली उस समय राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला था। लेकिन 2024 के चुनावों में कांग्रेस के नतीजे अपेक्षा के अनुकूल नहीं थे। बीजेपी, जनता दल (स) को 19 सीटें मिली जबकि कांग्रेस को केवल 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। 

इसके बाद ही मुख्यमंत्री सिद्धारामिया और उनके निकट सहयोगियों को लगने लगा कि अगर राजनीतिक रूप से इन गारंटियों का कोई लाभ नहीं मिल रहा तो  इन इनको जारी रखने का कोई मतलब नहीं। सिद्धारामिया  को भी वार्षिक तौर खर्चे हो रहे 60 हज़ार करोड़ बोझ  लगने लगे। राज्य का कुल बजट इस साल 3.20 लाख करोड़ का है इस प्रकार गारंटियों की राशि कुल बजट का पाँचवाँ हिस्सा है। राज्य सरकार के कुल बजट का आधा हिस्सा कर्मचारियों  के वेतन तथा अन्य सरकारी कार्यों पर खर्च होता है। इसके चलते विकास योजनायों के लिए अधिक धन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इस समय सोच चल रही है कि इन गारंटियों  या तो खत्म कर दिया जाये या बीपीएल परिवारों तक सीमित कर दिया जाये ताकि इन पर होने वाला खर्च काफी हद तक कम हो सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)