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वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता
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पद्मश्री प्रो. (डा.) गोपालकृष्ण विश्वकर्मा ने इंटर्न डाक्टरों के प्रतिनिधियों से बात करने के बाद दिल्ली और नई दिल्ली के अस्पतालों। के चिकित्सा अधीक्षकों (Medical Superintendents) की बैठक बुलाई और उनसे पूछा कि "किसको मासिक वेतन ज्यादा मिलना चाहिए ? इंटरमीडियट के बाद दो साल या साढ़े आठ साल पढने वाले को।" सबने कहा - निश्चय ही साढ़े आठ साल पढ़ने वालों को।"
डा. विश्वकर्मा ने आगे पूछा- 'यदि ऐसा न हो और वे न्याय पाने के लिए हड़ताल करें तो आप लोग उनका साथ देंगे या नहीं। यदि साथ देंगे तो आप सब लोग कल से छुट्टी पर चले जाइए। क्योंकि सारे इंटर्नडाक्टर कल से अपने न्याय सँगत मासिक वेतन की मांग मनवाने के लिए हड़ताल पर जा रहे हैं। केन्द्र सरकार हड़ताल तोड़ने के लिए पहले उनसे छात्रावास खाली करने का आदेश देगी। इनमें काफी डाक्टरों के बेटे, बेटियां, भतीजे, भतीजियां या भांजे भांजियां है। इनमें कई ऐसे गरीब या निम्न मध्यम वर्गीय मां बापों की बेटे बेटियां भी हैं, जिन्होंने अपने गहने, घर या खेत बेचकर बच्चों को डॉक्टर बनाया है। वे सब दिल्ली जैसे महंगे शहर में कैसे रहेंगे?
हड़ताल शुरू होते ही अखबारों में खबरें और चित्र
छपने लगे कि मरीज अस्पतालों के बाहर पटरियों पर पड़े हैं। इससे परेशान हो कर सरकार ने चिकित्सा अधीक्षकों को छात्रावास खाली कराने का आदेश जारी कर दिया मगर चिकित्सा अधीक्षक सामूहिक छुट्टी पर थे, इसलिए आदेश पर अमल नहीं हो सका। लिहाजा केबिनेट सेक्रेटरी टी. एन. शेषन ने डा. विश्वकर्मा को बुलाया और हड़ताली डाक्टरों से ड्यूटी पर तुरंत लौटने की अपील करने के लिए कहा। डा. विश्वकर्मा ने कहा- "डाक्टरों के साथ अन्याय हो रहा है। जब तक उन्हें आई. ए. एस. से ज्यादा मासिक वेतन नहीं मिलेगा, मैं उनसे अपील नहीं करूंगा।" दोनों में इस मुद्दे पर नोंक झोंक हुई। डा. विश्वकर्मा ने कहा- "मजबूरी में बड़ी संख्या में डाक्टर विदेशों में नौकरी करने जा सकते हैं। देश को तब कितने करोड़ रुपये का नुकसान होगा, यह सोचिए। अभी तो जरा सा खर्च बढ़ेगा। बरना भारत की स्वास्थ्य सेवाओं का ढाँचा गड़बड़ा जाएगा।" शेषन ने प्रधानमंत्री से डा. विश्वकर्मा की शिकायत कर दी। प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने डा.विश्वकर्मा को बुलाया। वह डा. विश्वकर्मा की बात मान गए और बोले "आपके तर्कों में दम है।" इसके बाद इंटर्न डाक्टरों का मासिक वेतन सत्रह हजार से बढ़ कर सत्तर हजार हो गया। जो आज भी कायम है। डा. विश्वकर्मा अपने जीवन में न किसी से डरे और न दबे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)