वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कुछ दिन पूर्व यह कह कर सनसनी पैदा कर दी कि विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बाला जी मंदिर के लड्डू प्रसाद में उपयोग किया जाने वाले देसी घी में मिलावट पाई गई है। इस घी के सैंपल में पशुओं की चर्बी और मछली का तेल पाया गया है। इसके बाद इस मामले पर जो बवाल हो रहा है वह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। रोज़ कोई न कोई जानकारी सामने आ रही है। एक तरफ जहाँ केंद्रीय स्वाथ्य मंत्रालय ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार ने सारे मामले की जाँच के लिए विशेष जाँच टीम का गठन किया है।
तिरुपति मंदिर, जिसका पूरा नाम व्यंकटेश्वर तिरुपति मंदिर है, में आने वाले तीर्थ यात्रियों को प्रसाद का लड्डू दिया जाता है। एक तीर्थ यात्री को एक ही लड्डू दिया जाता है। अगर कोई यात्री अधिक लड्डू लेना चाहे तो पैसे देकर खरीद सकता है। इस लड्डू को श्रीवरी लड्डू कहा जाता है। तीर्थ यात्रियों को प्रसाद के रूप में शुद्ध देसी घी तथा सूखे मेवों से भरपूर ये लड्डू देने की परंपरा लगभग 300 वर्ष से चली आ रही है। इस लड्डू का स्वाद अपने आप में अलग है। ये लड्डू मंदिर परिसर में स्थित रसोई में बनाये जाते हैं। यहाँ रोज़ 3 लाख लड्डू बनते हैं। ये लड्डू लगभग 200 पंडित बनाते हैं। इस रसोई 24 घंटे लड्डू बनाने का काम चलता रहता है। इन बनाने के लिए रोजाना 500 किलो देसी घी का उपयोग का किया जाता है। मंदिर की व्यवस्था तिरुपुति तिरुमाला ट्रस्ट चलता है। इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्य सरकार करती है। ट्रस्ट का कार्यकारी अधिकारी भी किसी आईएएस अधिकारी को बनाया जाता है।
2019 से पूर्व तक सहकारी क्षेत्र की कर्नाटक मिल्क फेडरेशन ही यहाँ देसी घी की आपूर्ति करती थी। यह व्यवस्था लगभग 20 वर्ष से चला आ रही थी। 2019 में जब राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ तथा वाई एस आर कांग्रेस सत्ता में आई तथा जगन मोहन रेड्डी राज्य के नए मुख्यमंत्री बने तो मंदिर के ट्रस्ट में बदलाव किया गया। जगन मोहन रेड्डी का परिवार इसाई तथा हिन्दू मिलाजुला परिवार है। इसमें कुछ हिन्दू है तो कुछ इसाई। जगन मोहन रेड्डी ने अपने मामा सुब्बा रेड्डी को मंदिर ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त किया। उन्होने पद सँभालने के कुछ दिन बाद ही मंदिर की व्यवस्थायों बदलाव किया। घी की आपूर्ति का ठेका फेडरेशन से लेकर निजी क्षेत्र की एक कंपनी को दे दिया गया।
तर्क यह दिया गया कि फेडरेशन जहाँ लगभग 400 रूपये प्रतिकिलो घी की आपूर्ती कर रही थी वहीं निजी कम्पनी की दर 320 रूपये किलो थी। दावा किया गया कि इससे मंदिर ट्रस्ट, जिसका सालना बजट लगभग 5,500 करोड़ रूपये है, को इससे काफी बचत होगी। यह वयवस्था हाल तक चल रही थी। पिछले साल के अंत में राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ। तेलगु देश पार्टी फिर सत्ता में आई और चंद्रबाबू नायडू तीसरी बार राज्य के मुख्यमत्री बने। ट्रस्ट का प्रशासनिक अधिकारी बदल दिया गया। जून में प्रशासन की ओर से इस घी के नमूने जाँच के नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड से प्रमाणित एक टेस्टिंग संस्था को भेजे गए। इसकी रिपोर्ट जुलाई के मध्य आ भी गई। इसमें पाया गया कि घी में पशुयों की चर्बी के अलावा बड़ी मात्र में मछली का तेल भी मिलाया गया है। बस इसके बाद तो बवाल ही शुरू हो गया।
यह बवाल तब और बढ़ गया जब नायडू ने खुद घी में भारी मिलावट का आरोप लगाया और इसकी जाँच के दे दिए। यह कहा गया की जब देसी घी की लागत ही लगभग 400 रूपये प्रति किलो तो शुद्ध देसी घी की आपूर्ति इससे कम दम पर कैसे हो सकती है। ऐसा तभी संभव है जब इसमें भारी मिलवाट कर दी जाये। इस कंपनी का ठेका तुरंत प्रभाव से रद्द कर दिया गया और कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को यह काम फिर से आवंटित कर दिया गया। उधर जगन मोहन रेड्डी का कहना है कि नायडू सरकार बदले की भावना से ही यह काम कर रही है। इधर कर्नाटक सरकार ने अपने धर्मार्थ विभाग को यह आदेश दिया है कि वह अपने देख रेख वाले लगभग 36 हज़ार मंदिरों यह पुख्ता करे कि वहां प्रसाद तथा आरती के लिए उपयोग किया जाने वाला देसी घी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन ही हो। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)