वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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मैसूरू में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारामिया की पत्नी पार्वती को मुयावाजे में मिले 14 अति महंगे 14 आवासीय भूखंड के मामले ने और तूल पकड़ लिया है। राज्यपाल थेवरचंद गहलोत द्वारा मुकदमा चलाये जाने के अनुमति के बाद एक से अधिक याचिकाएँ लोकायुक्त के मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत में पेश की गईं है। अदालत ने पुलिस को सारे मामले की जाँच 90 देने में पूरी कर इसकी रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। इसके साथ ही राज्य के प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी ने मुख्यमंत्री पर तुरंत इस्तीफा देने के दवाब और तेज कर दिया है। सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के वर्ग का कहना है कि परिस्थितियों को देखते हुए दिद्धारामिया को स्वयं अपने से त्यागपत्र दे देना चाहिए ताकि उनके खिलाफ निष्पक्ष जाँच हो सके।
मैसूरू शहर के बाहरी इलाके में मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती को उसके भाई ने 2015 में 3.6 एकड़ का भूखंड उपहार में दिया था। कुछ समय बाद मैसूरू शहरी विकास प्राधिकरण ने इसका अधिग्रहण कर लिया। मुआवज़े के रूप में उन्हें शहर के एक मांगे इलाके में 14 आवासीय भूखंड आवंटित कर दिये गए। जिनकी इस समय बाजार कीमत लगभग 66 करोड़ रूपये है। कुछ महीने मैसूरू के स्थानीय सूचना का अधिकार कार्यकर्ता के आवेदन पर प्राधिकरण ने स्वीकार किया कि इन 14 आवासीय भूखंडों का आवंटन नियमों को ताक पर रख कर किया गया था। सूचना के अधिकार कार्यकर्ता सन्हेमयी कृष्णा ने राज्यपाल को पत्र लिख कर अदालत में याचिका दाखिल करने की अनुमति मांगी। कार्यकर्त्ता ने कहा था कि सिद्धारामिया ने इस मामले को जानबूझकर छिपाए रखा।
नियमों केअनुसार जब कोई चुनाव लड़ता है तो नामांकन के साथ उम्मीदवार को अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की सम्पति का विवरण देना होता है। लेकिन सिद्धारामिया ने 14 भूखंडों का कोई विवरण नहीं दिया जबकि वे इसके बाद एक से अधिक चुनाव लड़ा चुके थे। यह जानकारी मिलने के बाद सिद्धारामिया ने राज्यपाल से मिलकर अपना स्पष्टीकरण दियातथा अनुरोध किया कि वे मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दे। केवल इतना ही नहीं राज्य मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव् के जरिये ऐसा ही अनुरोध राज्यपाल से किया। लेकिन इस दवाब के बावजूद राज्यपाल ने मुकदमा चलाये जाने के अनुमति दे दी. जैसा का स्वाभाविक था सिद्धारामिया ने राज्यपाल की इस अनुमति को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती कोर्ट ने सुनवाई पूरी तक राज्यपाल की अनुमति पर रोक लगा दी। कुछ दिन पहले हाईकोर्ट ने मुख्यमत्री की याचिका को ख़ारिज कर दिया तथा सूचना के अधिकार कार्यकर्त्ता को स्थानीय अदालत में मुकदमा पेश करने का अनुमति दे दी। भ्रस्टाचार के मामलों की जाँच करने वाले लोकायुक्त को भी मामला दर्ज करने के लिए कहा।
हाई कोर्ट के इस आदेश के दो दिन बाद स्थानीय अदालत में एक साथ कई याचिकाएं दाखिल की गई। अदालत ने पुलिस को 90 दिनो में जाँच पूरी करके अदालत को रिपोर्ट देने का आदेश दिया। कृष्णा की याचिका में सिद्धारामिया को अभियुक्त नंबर 1, उनकी पत्नी पार्वती को अभियुक्त नंबर 2, सिद्धारामिया के साले मल्लिकार्जुन स्वामी, जिन्होंने यह भू खंड अपनी बहिन को उपहार में दिया था, को अभियुक्त नंबर 3 तथा स्वामी को भूखंड बेचने वाले देवराजू को अभियुक्त नंबर 4 बनाया है। याचिका में कहा गया है कि सिद्धारामिया ने अपने राजनीतिक प्रभाव उपयोग कर यह जमीन घोटाला किया। इसी बीच सिद्धारामिया को यह संकेत मिला कि मामला जाँच के लिए सीबीआई को सौपा जा सकता है। इसको रोकने के लिए मंत्रिमंडल ने फैसला करके को राज्य सरकारों द्वारा सीबीआई के जाँच के लिए केंद्र को दी जाने वाली ‘सामान्य सहमति’ नहीं देने की बात कही। इसके साथ ही राज्य के प्रमुख सचिव के यह निदेश दिया कि वे मंत्रिमंडल की अनुमति के बिना राज्यपाल के किसी पत्र का जवाब नहीं दे।
इसके बीच सूचना के अधिकार कार्यकर्त्ता कृष्णा के खिलाफ एक महिला को पीटने के साथ साथ प्रताड़ित करने का मामला मैसूरू में दर्ज किया गया है। स्थानीय पुलिस को इस मामले में तुरंत कार्यवाही करने का निदेश दिया गया हैं। बीजेपी नेताओं का कहना है कि जब 2011 जब उनके पार्टी के नेता और तब राज्य के मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा के खिलाफ तत्कालीन राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने वन विभाग की जमीन के एक टुकड़े को डी नोटिफाई किये जाने पर उनके खिलाफ मुकदमा मामला दर्ज किये जाने की अनुमति दी थी तो उन्होंने बिना किसी विलम्ब के अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। अब इसी तरह सिद्धारामिया को भी पद छोड़ देना चाहिए ताकि वे जाँच को प्रभावित नहीं कर सकें। कांग्रेस पार्टी के भीतर भी सिद्धारामिया पर पद छोड़ने का दवाब लगातार बढ़ रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)