भारतीय संस्कृति में दान पुण्य का सदा से बड़ा महत्व रहा है। किसी को कुछ भी देने से हमें आंतरिक खुशी मिलती है जो हमारे दिल और दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव डालती है और लेने वाला तो हमें आशीर्वाद देता ही है। दान का तात्पर्य यह नहीं की आप लाखों करोड़ों रुपए दान करें अपनी क्षमता व सामर्थ अनुरूप ही करें। आजकल लोग मंदिरों में बहुत पैसा चढ़ाते हैं लेकिन उस परमपिता परमेश्वर जो दातार है उसको पैसों की क्या जरूरत है। उन पैसों से किसी गरीब को खाना खिलाए, किसी गरीब का बीमार आदमी का इलाज करादे, अगर आर्थिक तंगी के कारण कोई विद्यार्थी उच्च शिक्षा में नहीं जा रहा है तो उसे शिक्षित करने की जिम्मेदारी उठाएं।
दान से हम परमपिता परमेश्वर की असीम दुआओं के हकदार हो जाते हैं किसी बेटी के ब्याह में कुछ मदद कर दे, घर के दरवाजे पर कोई प्यासा आए तो उसे एक गिलास ठंडा पानी पिला दे। किसी की मदद करने से हमारे दोनों काम एक साथ हो जाएंगे उसका काम भी हो जाएगा और भगवान भी हमारे प्रसन्न हो जाएंगे।
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़, (राजस्थान)।