देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस पर विशेष
लेखक : वेदव्यास
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार हैं
www.daylife.page
जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री (1947-1964) थे जो नए निर्माण का सपना देखते थे और कहते थे कि हमने अभी आजादी पाई है लेकिन स्वराज प्राप्त करना हमारा मुख्य लक्ष्य है। उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था कि-‘मुझे देश के लोगों ने अजहर प्यार दिया है और मैं नहीं जानता कि इसके बदले में उन्हें क्या दूं।‘ और इसी भावना के साथ उन्होंने भारत को कल-कारखाने तथा ज्ञान-विज्ञान की वह तरक्की दी जिससे कि देश की गरीबी दूर हो सके।
जवाहरलाल नेहरू को मैंने भी कुछ पढ़ा, लिखा तथा सुना है और मुझे लगता है कि वह एक राजनीतिज्ञ कम थे तथा भारत के लिए जीने-मरने का सपना रचने वाली कविता अधिक थे। जिसने भी जवाहरलाल नेहरू की चर्चित पुस्तकें-विश्व इतिहास की झलक, हिंदुस्तान की खोज तथा पिता के पत्रःपुत्री के नाम, को पढ़ा है। वह जान सकते हैं कि एक समग्र भारत की परिकल्पना किसी नागरिक के लिए क्या हो सकती है। उनका इतिहास बोध कहता था कि गुलामी से ही आजादी का जन्म होता है और फिर आजादी से ही नव निर्माण (स्वराज) की आधारशीला बनाई जा सकती है। महात्मा गांधी के सानिध्य ने ही उन्हें राष्ट्र नायक बनाया था और 1907 की बोलशेविक क्रांति (रूस) ने ही उनमें सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को आगे बढ़ाया था।
जवाहरलाल नेहरू के अनेक राजनीतिक निर्णयों को आजादी के 76 साल बाद दलगत लोकतंत्र द्वारा चाहे जैसा भला-बुरा कहा जाता हो लेकिन यह एक सत्य है कि नेहरू के बाद भारत अपना कोई वैकल्पिक विकास का मॉडल आज तक नहीं बना पाया है तथा लोकतंत्र, समाजवाद और पंथ निरपेक्षता की उनकी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक अवधारणाएं धीरे-धीरे कमजोर हुई हैं। कश्मीर के भारत में विलय और भारत-पाक विभाजन की स्थितियों को लेकर भले ही संकीर्ण हिंदुवादी ताकतों की अपनी एक राजनीति हो लेकिन हमें इस बात को कभी कोई नहीं भुला सकता कि वह भारत की अनेकता में एकता के पहले निर्माता थे और धर्म, जाति, भाषा तथा क्षेत्रीयता की सोच को भारत के लिए सदैव हानिकारक मानते थे।
स्वतंत्र भारत में समता, न्याय एवं शांति का पहला भाष्य उन्होंने ही लिखा था और नवभारत की बुनियाद को विज्ञान तथा औद्योगिकरण से उन्होंने ही जोड़ा था। वैज्ञानिक समाजवाद की पहल उनकी ही थी और पंचवर्षीय योजनाओं का ढांचा देश में उन्हीं ने बनाया था। परमाणु शक्ति संपन्न भारत की नींव उन्होंने ही रखी थी और गरीब-अमीर के बीच असमानता तथा विषमता की खाई पाटने के लिए उन्होंने अतिवाद से हटकर मिश्रित अर्थव्यवस्था भारत के लिए अपनाई थी।
जवाहरलाल नेहरू का प्रभाव आज भी देश की तीन पीढ़ियों में एक साथ देखा-समझा जा सकता है। उनकी भारत में लोकतंत्र की बुनियादी समझ को हम भारत के उस संविधान में आज भी फलीभूत होते देख सकते हैं जो कभी उनके मंत्रिमंडल में विधि मंत्री रहे डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संजोया था। मुझे यह भी कहना होगा कि जवाहरलाल नेहरू की विरासत आज भी कांग्रेस पार्टी का एक गौरवपूर्ण इतिहास है तथा इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी भी महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के विकास के माॅडल की प्रतिछवि ही रहे हैं। भारत की राजनीति में तीन पीढ़ियों के त्याग बलिदान और देशभक्ति के संगम को आज भी नकारना सर्वथा असंभव है क्योंकि यह सभी जनता के सपनों को समय की भाषा देते हैं।
जवाहरलाल नेहरू ने ही गुट निरपेक्ष विश्व की राजनीति को आगे बढ़ाया था और पूरब-पश्चिम के शक्ति केंद्रों में विभाजीत दुनिया की तीसरी दुनिया का महत्व बताया था। यही कारण था कि नेहरू के जीवनकाल में भारत की समझ जाति, धर्म की संकीर्णताओं से कमजोर नहीं हुई और पूरा देश एक सुरताल में बंधा रहा। ऐसा नहीं है कि नेहरू ने भारत को अपने रहते नहीं समझा था। यदि आप जवाहरलाल नेहरू की लिखी (1938) की पुस्तक हिंदुस्तान की समस्याएं, पढ़ें तो आपको पता चलेगा कि वह विकासशील भारत के यथार्थ को जानते थे और कहते थे कि-महात्मा जी जब आए थे हमारे पास, इसी सियासी हिंदुस्तान के मैदान में तो पहले दो-तीन बातें उन्होंने हमें सिखाई थीं। पहली बात उनमें यही थी हमें आपस में मिलकर काम करना है और फूट डालो और राज करो, की सभी प्रवत्तियों से बचना है। गांधी जी ने दूसरी बात यह कही थी कि हमारे समाज में ऊंचता और नीचता नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही महात्मा जी यह भी कहते थे कि न्याय और सत्य की लड़ाई हमें निर्मय होकर लड़नी चाहिए। अतः नेहरू ने जनता के दिल और दिमाग को साफ रखने की बात पर सदैव जोर दिया था।
जवाहरलाल नेहरू के लाल किले के अनेक भाषण मैंने भी बचपन में सुने हैं और आज भी मुझे ऐसा ही लगता है कि वह एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो भारत की जनता के मनोविज्ञान को समझते थे और बूढ़े-बच्चे सभी को प्यारे लगते थे। भारत में नेहरू का जन्मदिन 14 नवंबर आज भी बाल दिवस के रूप में मनाया जाना भी यही कहता है कि-‘भारत का भविष्य यह बच्चे ही लिखेंगे।‘ जवाहरलाल नेहरू भारत के ऐसे पहले राष्ट्रनायक हैं जिन्हें हम सभी आज एक भावनात्मक विचार मानते हैं क्योंकि ज्ञान और विज्ञान को जन अभियान बनाने की शुरुआत उन्होंने ही की थी। जवाहरलाल नेहरू को भले ही किसी ने गंदी राजनीति के गंदे खेल में आज भुला दिया हो लेकिन हम आज एक बात फिर विश्वास के साथ कह सकते हैं कि नेहरू इस देश का एक ऐसा इतिहास है जो सभी संकीर्णताओं से मुक्त है और भारत की आत्मा का अनुवाद जैसा है। ऐसे में नेहरू को हमें केवल राजनीतिक चश्में से ही नहीं देखना चाहिए, अपितु, विकास और समंवय की आवाज के रूप में भी जानना चाहिए। जवाहरलाल नेहरू का 14 नवंबर को जन्म एक ऐसे सहज देशभक्त की जीवन यात्रा है-जिसने कभी हमें ‘आराम हराम है‘ का नारा दिया था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)