आ अब डूब मरें : व्यंग्यकार रमेश जोशी

 

लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com सम्पर्क : 94601 55700 

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83 वें साल में चल रहे हैं। मोदी जी से भी आठ साल पहले अमृतकाल में प्रवेश कर चुके थे और रिटायर तो मोदी जी के 2001 में गुजरात का नेतृत्व संभालने के एक साल बाद ही हो चुके थे लेकिन छाती न तब 56 की थी और न ही आज। वे दिन में 20-25 घंटे और बिना कभी कोई छुट्टी लिए काम कर सकते हैं। हो सकता है वे, अगर कभी सोते हैं तो, सोते हुए भी ड्यूटी पर रहते हैं। बड़ी कठिन ड्यूटी है। केदारनाथ में ध्यान करें या विवेकानंद स्मारक में मौन व्रत धारें, ड्यूटी पर ही माने जाते हैं। विष्णु को भी देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक सोने के लिए छुट्टी अलाउड है लेकिन मोदी जी को नहीं।  

दोपहर आते आते हमारी तो बैटरी डाउन हो जाती है। लेटना ही पड़ता है भले ही नींद न आए। हाँ, कुछ देर के लिए अफीम की सी पिनक जरूर आती है। इसी मधुमती भूमिका में लेटे थे कि तोताराम का असमय वैसे ही प्रवेश हुआ जैसे कि मोदी जी अमेरिका से लौटकर अकस्मात सेंट्रल विष्टा की निर्माणाधीन साइट पर पहुँच गए।  

हमने कहा- तोताराम, सुबह पाँच बजे से एक बजे तक आठ घंटे की ड्यूटी करके थोड़ा लेटे हैं। हम मोदी जी नहीं हैं जो थकते नहीं। अब हम किसी विमर्श, बौद्धिक, विश्लेषण या मंथन के मूड में नहीं हैं।  

बोला- अब जब नाक कट ही गई तो कैसा विश्लेषण और कैसा विमर्श। अब तो बस, यह तय करना है कि शर्म के मारे डूब मरें या पंखे से लटककर आत्महत्या करें या फिर आमरण अनशन?  

हमने पूछा-ं अभी महाराष्ट्र के चुनाव हुए ही नहीं तो फिर नाक कैसे कट गई?  

बोला- तू उसकी फिकर मत कर। हरियाणा की तरह, पहलवानों के अपमान और किसान आंदोलन में 700 किसानों की मौत के बावजूद, चुनाव जीतना आता है हमें।  

हमने कहा- तो फिर नाक कैसे कट गई? 

बोला- न्यूजीलैंड ने हमें अपने ही घर में 3-0 से सीरीज हरा दी।  

हमने कहा- लेकिन इसमें शर्म की क्या बात है? खेल में हार जीत होती ही है। जो अच्छा खेलता है वह जीत जाता है। वैसे भी खेल तो आनंद के लिए खेला जाता है। युद्ध में भी दो लड़ते हैं तो एक जीतता और एक हारता है।  कौन हारने के बाद आत्महत्या करता है? नर हो न निराश करो मन को। और फिर अगर शर्म से डूब कर मरना ही है तो क्रिकेट बोर्ड वाले, क्रिकेट से लाखों-करोड़ों कमाने वाले मरें।  

बोला- वैसे मास्टर, हम न तो कुछ कर सकते और न ही हमारी जिम्मेदारी बनती है फिर भी तेरे अनुसार क्या कारण हो सकता ह?  

हमने कहा- जैसे अहमदाबाद में जिस पनौती के कारण आस्ट्रेलिया से जीतते जीतते हार गए थे कहीं वैसी ही कोई पनौती तो मुंबई स्टेडियम में नहीं पहुँच गई ? 

बोला- ये सब अंधविश्वास हैं। अहमदाबाद वाला मामला किसी पनौती का नहीं बल्कि क्रिकेट के सट्टे का था।  

हमने कहा- तो फिर 'कटेंगे तो बँटेंगे' वाले मंत्र पर काम करना चाहिए था । सरफराज और मोहम्मद को खिलाने की क्या जरूरत थी? और यह वाशिंगटन सुंदर कौन है? क्या इसकी जगह कोई श्री विजयनगरम या प्रयागराज को टीम में नहीं लिया जा सकता था?  राष्ट्रवादियों के लिए कोई ईसाई और मुसलमान कैसे शुभ हो सकता है? और उनकी टीम में पटेल? इसका भी कोई गुजराती एंगल देखना चाहिए । लेकिन एजाज नाम से तो कोई देशद्रोही लगता है।  

बोला- लेकिन हम इतने सांप्रदायिक और कट्टर नहीं हैं।  

हमने कहा- तो फिर पिच के वास्तु, मैच के मुहूर्त और खिलाड़ियों की जन्म पत्रियाँ दिखवानी चाहियें थीं।  

बोला- अगर इनमें भी कुछ नहीं निकले तो? 

हमने कहा-तो फिर पिच गोबर से लीपनी चाहिए और खिलाड़ियों को गौ मूत्र से स्नान करके मैदान पर जाना चाहिए और हर बॉल पर जय श्रीराम का जयघोष करें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)