लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़
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गरीबों व जरूरतमंदों की आवश्यकता के अनुसार सहायता करना मुझे अच्छा लगता है इसी क्रम में नए कपड़ों के साथ-साथ में पुराने कपड़े भी देती रहती हूं कुछ दिनों पहले मेरे साथ एक छोटी सी घटना घटी। जिसे चिंतन करने पर मैं मजबूर हो गई। गत माह गैस की टंकी लेकर सिलेंडर वाला आया था। 8-10 वर्ष का एक मासूम सा बच्चा भी था उसके कपड़ों से गरीबी साफ झलक रही थी। मैंने प्यार से उसके सर पर हाथ रखकर पूछा_बेटा शर्ट लोगे क्या? उसने तुरंत अपने पहने हुए शर्ट की कॉलर पकड़ कर कहा_अभी यह मेरे पास है।
उसका जवाब सुनकर मेरा मन भर आया। मैं सोचने लगी कि जहां लोग इतना धन होते हुए भी और धन कमाने की लालसा में रहते हैं। यह मासूम बच्चा कितना संतोषी एवं निर्मल है।
बच्चे भगवान का रूप होते हैं इसका मतलब मैं उस दिन समझ पाई। बाद में अपने धन का मोह त्याग कर और ज्यादा गरीबों की मदद के लिए तत्पर रहने लगी।