कादम्बिनी (मासिक) और नंदन (मासिक) के साथी पत्रकार

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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1968 से हिन्दुस्तान टाइम्स (लि.) के पांच प्रकाशन थे। एक था अंग्रेजी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' सबसे ज्यादा कमाने वाला। विज्ञापनों के जरिए। दूसरा हिन्दी दैनिक 'हिन्दुस्तान'- भारत के हिन्दी दैनिकों में संभवतः सबसे पुराना और स्वतंत्रता आंदोलन में लगातार ग्यारह वर्षों  (1936-1947) तक निर्भीक भूमिका निभाने वाला। तीसरा प्रकाशन 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान'। इसने हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध बनाने में बेनेट ऐंड कोलमैन कम्पनी (टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की प्रकाशक कम्पनी) के प्रकाशन 'धर्मयुग (साप्ताहिक) की तरह ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन दो प्रकाशनों के बाद नई दिल्ली के 'दिनमान' और कोलकाता के 'रविवार' ने नई धारा की पत्रकारिता शुरू की। चौथा प्रकाशन था कादम्बिनी (मासिक)। यह मुंबई के 'नवनीत' (हिन्दी डाइजेस्ट) की तरह हिन्दी पाठकों की रुचि परिष्कृत करने का प्रयास था। बेनेट ऐंड कोलमैन कम्पनी द्वारा बच्चों के लिए निकाली गई मासिक पत्रिका 'पराग' को टक्कर देने के लिए हिन्दुस्तान टाइम्स समूह ने उतारी मासिक पत्रिका 'नंदन'।नई दिल्ली से छपने वाली 'सरिता' और 'मुक्ता' के अलावा इलाहाबाद से निकली 'माया' और 'मनोरमा' । इन पत्रिकाओं के अलावा विभिन्न राज्यों से कई लघु पत्रिकाओं ने भी हिन्दी पाठकों को रोचक सामग्री उपलब्ध कराई । लघु पत्रिकाओं ने आंदोलन ही चला दिया। 

कादम्बिनी के सम्पादकीय विभाग में शर्माजी और श्री दुर्गा प्रसाद शुक्ल मेहनत से सामग्री जुटाते थे। वहां के पत्रकारों के सामने हैदराबाद की 'कल्पना', कोलकाता का 'ज्ञानोदय', पटना की 'नई धारा', नई दिल्ली का 'हंस', उदयपुर की राजस्थान साहित्य अकादमी की मधुमती पत्रिका चुनौती दे रही थी। वहां के उप सम्पादक श्री दुर्गा प्रसाद नौटियाल ने श्रीमती इंदिरा गांधी अभिनंदन ग्रंथ की योजना बनाई और मेरी पत्नी प्रो.(डा.) सत्या जांगिड का आर्थिक विकास के बारे में लेख छापा था।

'नंदन के संपादक जय प्रकाश भारती की बाल साहित्य में रुचि थी। इसलिए वह 'साप्ताहिक हिन्दुतान' से वहाँ चले गए। 'नंदन' ने बच्चो में स्तरीय सामग्री के प्रति रूचि जगाई।

मैंने वर्ष 1964 में एक नए तेवर की पत्रिका 'मरुमान' निकाली। इसमें भारत में पहली बार तमिलनाड़ के साहित्य संस्कृति और नृत्य शैली कुचिपुड़ी की जानकारी हिन्दी पाठकों को दी गई। इसके सम्पादन और तमिल से हिंदी में अनुवाद के लिए तमिल तथा तेलुगु भाषी रचनाकारों से सह‌योग लिया गया। देश की एकता को मजबूत करने के लिए हिंदी भाषी पाठकों को अन्य भारतीय भाषाओं की रचना भी पढ़नी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)