भारत में संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पक्ष और विपक्ष गाड़ी के दो पहियों के समान होते हैं जो देश की व्यवस्था को सुचारू रूप से क्रियान्वित करने के लिए होते हैं।
लेकिन विगत वर्षों में सत्ता पक्ष व विपक्ष में आपसी मेलजोल व सद्भाव खत्म होता जा रहा है व कड़वाहट बढ़ती जा रही है। आपसी मान सम्मान के बजाय आरोप_प्रत्यारोप की प्रतिस्पर्धा जारी है। संसद सत्र के दौरान हमारे जन प्रतिनिधि महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के बजाय हंगामा करते रहते हैं। सभी राजनीतिक दल अपने मतलब की बात करते हैं। आमजन की तकलीफों के बारे में कोई भी चर्चा नहीं करते। आए दिन हंगामा करने के दौरान किसी एक घोटाले पर जितना रुपैया घोटाले की भेंट में चढ़ जाता है। संसद की प्रति मिनट की कार्रवाई पर लाखों रुपए का खर्चा होता है आम जनता की खून पसीने की कमाई होती है। हंगामा करने की बजाय शांतिपूर्ण तरीके से बहस की जाए, विचार विमर्श की शैली अपनाई जाए तो किसी भी मुद्दे का हल आसानी से निकाला जा सकता है।
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़।