स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर से
www.daylife.page
इतिहास कल रोएगा केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा जानबूझकर की गई इस गलती पर।पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय डॉक्टर मनमोहन सिंह क्या इतना भी हक़ नहीं रखते थे कि उनका अंतिम संस्कार किसी उचित जगह पर किया जाता और केंद्र सरकार वहीं उनका स्मारक बनाने की घोषणा भी कर देती,लेकिन कहना पड़ेगा कि मोदी सरकार ने संवेदन हीनता की पराकाष्ठा कर दी। इसी के चलते डॉक्टर मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार दिल्ली के निगम बोध घाट पर करना पड़ा, जो अपेक्षाकृत एक साधारण श्मशान घाट है। पीएम नरेंद्र मोदी बार बार दम भरते रहे हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है।वे कई बार भारतीय संस्कृति के अनुकरणीय हवाले भी देते नहीं थकते। सवाल है कि आखिर भारतीय संस्कृति में कहां लिखा है कि एक मृत प्रधानमंत्री के दाह संस्कार की जगह को लेकर भी ओछी राजनीति की जाए।हमारी संस्कृति तो यह कहती है कि एक स्वर्गवासी दुश्मन से भी तमाम गिले शिकवे कुछ समय के लिए स्थगित कर दिए जाते हैं। आगे के समय में ऐसे व्यक्ति के जीवन और कार्यों का खुलकर विश्लेषण किया जा सकता है, मगर, कहां तो मोदी कई मंत्रियों के साथ डॉक्टर मनमोहन सिंह के अंतिम दर्शन के लिए गए और कहां वे उनके (डॉक्टर सिंह) दाह संस्कार की जगह को लेकर चुप्पी साधे रहे।यदि मनमोहन सिंह की उनके कार्यकाल में मौनी बाबा या मौन सिंह कहकर हंसी उड़ाई जाती थी, तो मोदी की इस चुप्पी को क्या कहा जाए आखिर?
विभिन्न खबरों पर विश्वास करें तो राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने खुद होकर सरकार से कहा था कि डॉक्टर सिंह का स्मारक शक्ति स्थल में से आवश्यक जमीन लेकर भी बनाया जा सकता है।बता दें कि शक्ति स्थल पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी का स्मारक बना हुआ है। इतना ही नहीं देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू का समाधि स्थल शांति वन तो करीब 63 एकड़ क्षेत्रफल में बना हुआ है। इसी जमीन में से भी डॉक्टर सिंह के स्मारक के लिए कोई टुकड़ा लिया जा सकता था।
डॉक्टर सिंह एक गैर राजनीतिक प्रधानमंत्री थे। इसीलिए वे सियासत की पेचीदगियां समझने में कुल मिलाकर नाकाम रहे। हालांकि वे दुनिया के जानेमाने अर्थशास्त्री थे।इसी के चलते शायद उन्होंने यहां तक कह दिया था कि हमें 1962 के युद्ध में चीन द्वारा हड़पी गई जमीन की वापसी की मांग अपने आर्थिक हितों को देखते हुए भूल जानी चाहिए।उनकी यह भी बहुत बड़ी गलती थी कि उन्होंने कश्मीर के अलगाववादी सरगना यासीन मलिक की मेहमान नवाजी तक की। एक बार तो देश के तीनों सेना प्रमुखों ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खात्मे के लिए उनसे (डॉक्टर सिंह) से पाकिस्तान पर हमला करने की अनुमति तक मांगी थी, लेकिन तब की मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि डॉक्टर सिंह ने यह अनुमति नहीं दी।हो सकता है कि चूंकि उन्हें सोनिया, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के रिमोट द्वारा संचालित प्रधानमंत्री कहा जाता था, इसलिए गांधी परिवार ने उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन लेने से रोक दिया हो।
ये भी सही है कि उन्होंने कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं,किंतु इस वाक्य का एक अर्थ यह भी तो निकाला जा सकता है कि धन अर्जित करने के लिए अटूट मेहनत और ईमानदारी की जरूरत होती है जैसे कि डॉक्टर सिंह खुद थे।कहा जा रहा है कि उन्होंने ही जेहादियों के लिए अल्प संख्यक मंत्रालय का गठन किया, लेकिन इसके पीछे मूल भावना यह भी तो हो सकती थी कि वे खून_ खराबे की बजाय शांति का मार्ग अपनाकर जेहादियों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करना चाहते हों।
व्हाटअप यूनिवर्सिटी द्वारा फैलाई गई इस बदकही के कहीं प्रमाण नहीं मिलते कि उन्होंने देश को आर्थिक गुलामी की ओर धकेला।पूरी दुनिया जानती है कि वे एक ऐसे अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने 1990_91में देख को आर्थिक कंगाली से बाहर निकाला था।जहां तक हिंदू आतंकवाद की थ्योरी उन्हीं के द्वारा गढ़े जाने की बात है, तो यह वाक्य तो सबसे पहले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मुंह से निकला था। दिग्विजय सिंह भले कांग्रेसी हो,किंतु वे अपनी अति वाचलता के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा जाने जाते हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)