नया साल

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अंग्रेज  भारत छोड़कर चले गए लेकिन हमारी मानसिकता नहीं बदली। वह हमें विरासत में मानसिक गुलामी दे गए इसीलिए अपनी संस्कृति को भूल कर पाश्चात्य संस्कृति के रंग में ढल गए। जीवन शैली ही बदल गई। पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और जीवन शैली की अलग ही पहचान थी। हमारी पहचान हिंदी भाषा से ही होती थी। पूरे विश्व में कोई भी वेशभूषा भारतीय नारी की साड़ी का  मुकाबला नहीं कर सकता है। इसी प्रकार हमारा खान-पान भी बदल गया है। भारतीय पंचांग के अनुसार हमारा हिंदू नव वर्ष चैत्र माह की प्रथम तिथि को मानते हैं। मिश्री व नीम की पत्तियों का प्रसाद वितरण किया जाता है। यह सब भूलकर युवा पीढ़ी 1 जनवरी को पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार नए साल का जश्न मनाती है पार्टी, क्लब, शराब, डीजे पर नाचना और पूरी रात हंगामा करना, सबसे मुख्य बात यह है कि अमीर घरों की लड़कियां भी इसमें शामिल होती है। 

लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़, (राजस्थान)