लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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उत्तर भारत के लोंगों का यह कुछ अजीब सा लगेगा कि धुर दक्षिण के केरल राज्य में न केवल हिन्दू संगठन ही वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक का समर्थन कर रहे है बल्कि राज्य में लगभग 1000 चर्चों से जुड़े ईसाई समुदाय के लोग भी इस मुद्दे पर हिन्दू समुदाय के साथ है। इन चर्चों के अनुयायी न केवल इसका खुलकर विरोध कर रहे है बल्कि धरने, प्रदर्शन भी कर रहे हैं। यहाँ तक कि एक बड़ा आन्दोलन चलने की तैयारी भी की जा रही है।
राज्य में ईसाई कई वर्गों में बंटा हुआ है। इनमें से सबसे बड़ा वर्ग सिरो ईसाईयों का है। इसी वर्ग के लोग वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक का समर्थन करने में सबसे से आगे है। राज्य में ईसाइयों की आबादी लगभग 17 प्रतिशत है इनमें सिरो ईसाई सबसे अधिक संख्या में है। राज्य में सबसे अधिक चर्च भी इसी वर्ग के है। इस विधेयक का विरोध करने में यही ईसाई वर्गआगे है अगर राज्य के राजनीतिक इतिहास को देखा जाये तो यह बात साफ़ हो जाती है राज्य का यह और अन्य ईसाई समुदाय पिछले सभी चुनावों में, कांग्रेस का साथ देता रहा है। इसी के बल पर ही कांग्रेस सत्ता में आने में कामयाब रही है। संसद में जब वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पारित किया गया तो उसे कुछ दिनों बाद ही राज्य की वाम सरकार ने राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करवाकर साफ कर दिया कि वह इस विधेयक के खिलाफ है. राज्य में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था. इस तरह यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ था . उस समय राज्य के दो बड़े गठबंधन - मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नीत वाम मोर्चा तथा कांग्रेस नीत लोकतान्त्रिक मोर्चा - संभवत पहली बार मुद्दे पर के साथ आये थे। तबी से राज्य में वक्फ बोर्ड विधेयक के खिलाफ बड़ा माहौल बना हुआ था। लेकिन कुछ सप्ताह पहले एक ऐसी घटना हुई जिससे सारी फिजां ही बदल गई।
राज्य के मुस्लिम वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि कोच्ची जिले दो गावों – मुनंबम और चेराई की सारी भूमि वक्फ की सम्पति है और सरकार इन दोनों गावों जमीन वक्फ को सौंप दे। इसके बाद जो बवाल शुरू हुआ , जो अभी भी थमने का नाम ही ले रहा। ये दोनों गाँव ईसाई बहुल है तथा इनके वासियों का दावा है कि उनके पास जमीनों और रिहायशी आवासों के सारे दस्तावेज़ है। वे कई पीढ़ियों से यहाँ रह रहें है तथा अपनी सम्पतियों का टैक्स सरकार को देते आ रहे हैं। उन्हें कोई भी उनकी जमीन और सम्पत्ति से बेदखल नहीं कर सकता।
इन गावों के लोगों ने रविवार को चर्चो में होनी वाली धार्मिक मॉस में भी यह मुद्दा उठाया। चर्च के पादरी तथा चर्च की प्रबंध समिति ने इस मुद्दे पर उनका साथ देने का वायदा किया। स्थानीय समाचार पत्रों के अनुसार अब तक 1000 या उससे से अधिक चर्चो में यह मुद्दा उठ चुका हैं। अन्य चर्चों में भी यह बात पहुँच चुकी है।
इन चर्चों के पास अपनी अपनी बड़ी संपत्ति है। कुछ चर्चों की प्रबंध परिषदों को अभी से यह भय सताने में लगा है कि कल को वक्फ बोर्ड उनके परिसम्पतियों पर अपना दावा कर सकता है इसलिए अभी से सजग होना जरूरी है। पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान जगह जगह प्रदर्शन और धरने हो रहे है जिनमें यह मांग उठाई जा रही है कि सभी दलों को वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर सरकार का साथ देना चाहिए। चर्चों के पादरी यह कह रहे हैं कि उनका बीजेपी से अन्य मुद्दों पर मतभेद हो सकता है लेकिन वक्फ बोर्ड के मामले पर वे पूरी तरह से सरकार के साथ है।
बताया जाता है बीजेपी इस राज्य में इस मुद्दे को भुनाने में लगी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कुछ समय पहले केरल के ईसाई समुदाय में अपनी पैठ ज़माने का विस्तृत कार्यक्रम तैयार किया था। इसी के चलते पार्टी के बड़े नेता , जॉर्ज कुरियन को इस बार केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। कुरियन लम्बे समय से संघ और बीजेपी से जुड़े हुए है। 2015 में भी इसी प्रकार रिटायर आई एस अधिकारी के जी अन्फोंस को मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया था। ये दोनों ईसाई नेता बुद्धिवर्ग में अपना स्थान रखते है। वे भाषणों और लेखन में यह बात बार बार कहते है कि संघ एक राष्ट्रवादी संगठन है। बताया जाता है मध्यम वर्ग के कुछ ईसाई भी बीजेपी से जुड़ रहे हैं। जब से वक्फ बोर्ड का मुद्दा शुरू हुआ है तब से बीजेपी से जुड़े ईसाई नेता चर्चों के पादरियों और चर्च के प्रबंधन से जुड़े लोगों को के लगातार संपर्क में हैं वे इस कोशिश में है कि अधिक से अधिक ईसाई वक्फ बोर्ड विधेयक के विरोध में सामने आयें (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं।)