भारतीय जन संचार संस्थान की स्थापना और उसकी पत्रिका

भारत के सूचना व प्रसारण मंत्रालय की विभिन्न इकाइयों

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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(जैसे आकाशवाणी, पत्र सूचना कार्यलय आदि) में काम करने के लिए संघ लोक सेवा आयोग द्वारा चुने गए दो श्रेणियों के अधिकारियों को जन संचार के क्षेत्र में तेजी से हो रहे परिवर्तनों के बारे में जागरुक बनाए रखने के उद्देश्य से भारतीय जन संचार संस्थान की नई दिल्ली में 17 अगस्त 1965 को स्थापना की गई। उस समय भारत की सूचना व प्रसारण मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी थीं। इसलिए उनकी अध्यक्षता में एक स्वशासी समिति (भारतीय जन संचार संस्थान समिति) का गठन किया गया। इस संस्थान ने अगले वर्ष (1966) से टाइप की हुई  द्वैमासिक अंग्रेजी पत्रिका communicator शुरू की। यह कई वर्षों तक मुफ्त बांटी जाती रही। मेरे पास इसके जनवरी 1969 से अंक हैं। इससे पता चलता है कि यह पत्रिका वर्ष 1966 से टाइप से छाप कर बांटी जाती थी। इससे यह भी पता चलता है कि संस्थान शुरू में 2, रिंग रोड, किलोकरी, नई दिल्ली 110-014 में था। इस पत्रिका के जनवरी 1970 अंक के अंतिम पृष्ठ पर छपी सूचना के अनुसार संस्थान ने डी-13, साउथ एक्सटेंशन भाग-2, नई दिल्ली 110-049 से 1970 से काम करना शुरू कर दिया था।

मई-जुलाई 1973 का संयुक्तांक टाइप किया हुआ था। मगर बाद में संस्थान में छापा खाना लग गया। इसलिए अक्टूबर 1973 अंक से यह पत्रिका संस्थान में ही छपने लगी। इस अंक में IIMC Press से छपने का उल्लेख है। जनवरी 1974 से इसका मूल्य एक रूपया कर दिया गया। अप्रैल 1974 के अंक से इसका मूल्य दो रुपये हो गया। यह अंक तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को भी भेंट किया गया। इसमें फरवरी 1974 में उत्तर प्रदेश के 31 जिलों में हुए चुनावों के बारे में 48 प्रशिक्षुओं द्वारा लिखे गए लेख थे। इसके अलावा इंग्लैंड, बर्मा और बेल्जियम में हुए चुनावों के बारे में भी लेख थे। जनवरी 1976 में इसका वार्षिक शुल्क दस रुपये कर दिया गया। अप्रैल जुलाई 1976 अंक का मूल्य पाँच रुपया था। मगर वार्षिक शुल्क भारत में 10रु., विदेशों में एयर मेल से भेजने पर दो पौंड या पांच अमरीकी डालर था। यह अंक बिजली बार बार बंद होने से सितम्बर 1976 में छपा। साथ ही रिहायशी इलाके (साउथ एक्सटेंशन) में छापाखाना बनाने पर भी आपत्ति थी। इन कारणों की इस अंक में चर्चा की गई। अक्टूबर 1976 अंक में मूल्य फिर दो रुपये कर दिया गया।

जनवरी 1969 के अंक के अनुसार उस समय आई.पी. तिवारी निदेशक थे। वही इस पत्रिका के सम्पादक थे। प्रो. पी.एन. मल्हन प्रकाशक थे। इसमें प्रो. एच. वाई. शारदा प्रसाद जी का सम्पादन के दायित्व और तरीके' पर लेख छपा था। यह बहुत ही उपयोगी था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)