कुछ महत्वपूर्ण कदम : रामजी लाल जांगिड

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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आज मैं कुछ महत्वपूर्ण तिथियों की चर्चा करूँगा। मुंबई में टेलीविजन स्टूडियो जर्मनी की तकनीकी मदद से बना था। अक्टूबर 1971 में भारत और जर्मनी के बीच इस बारे में समझौता हुआ। यह तय हुआ कि मुंबई टेलीविजन स्टेशन जुलाई से दिसंबर 1971 के बीच की अवधि में बनाना है। इस बारे में हुई बैठक में आकाशवाणी और सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (CPWD) के अधिकारियों ने भाग लिया था। साथ में पुणे में रिले केंद्र बनाने पर भी सहमति हुई। यह तय हुआ कि पश्चिमी जर्मनी सरकार आवश्यक साजो सामान देगी और भारत भवन बनाएगा। साथ ही एयर कंडीशनिंग व प्रकाश व्यवस्था करेगा तथा अन्य आवश्यक सामान देगा।

26 जनवरी 1967 को प्रधानमंत्री ने दूरदर्शन पर किसानों के लिए 'कृषि दर्शन' का उद्‌घाटन किया। यह कार्यक्रम शुरू में सप्ताह में दो दिन आता था। वह 20 मिनट का होता था। दिल्ली के पास के अस्सी गाँवों को टेलीविजन सेट दिए गए। जिससे गाँव वाले एक साथ बैठ कर यह कार्यक्रम देख सकें। दर्शकों के बारे में शोध करने से पता चला कि छत्तीस प्रतिशत किसानों ने 'कृषि दर्शन' कार्यक्रम का नाम ही नहीं सुना था। केवल नौ प्रतिशत किसान ही यह कार्यक्रम देख रहे थे।

29 जनवरी 1972 को भारतीय जन संचार संस्थान ने पहली बार देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता और जन संचार बढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इसमें तीन सिफारिशें की गई। पहली सिफारिश पत्रकारिता और जन संचार की शिक्षा में भारतीयता को बुनियादी आधार बनाने के बारे में थी। इस संगोष्ठी में विभिन्न विभागाध्यक्ष, भारतीय प्रेस परिषद, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, यूनेस्को, आकाशवाणी तथा विभिन्न समाचार पत्रों के प्रतिनिधि भी मौजूद‌ थे। दूसरी सिफारिश में इस संस्थान से आग्रह किया गया कि वह समय समय पर इस विषय के शिक्षकों के लिए पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, कार्यशाला और ग्रीष्मकालीन पाठ्यक्रम करता रहे जिससे इस विषय की शिक्षा में भारतीयता को बल मिले।

तीसरी सिफारिश में भारत की जरूरतों को ध्यान में रख कर इस विषय की पुस्तकें लिखी जाने और उन्हें छापने की बात कही गई। संगोष्ठी में इस क्षेत्र के शिक्षकों का अखिल भारतीय संगठन बनाने का आव्हान भी किया गया।

इस संगोष्ठी में बैंकाक विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के दो शिक्षक, जांबिया संवाद समिति के प्रतिनिधि, काबुल के पत्रकार, 'द नेशन', बैंकाक के पत्रकार, 'राइजिंग नेपाल' के श्री बी.डी कोइराला और कई विदेशी सम्पादक मौजूद थे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)