मैं तो एक शुभकामना हूं : वेदव्यास

 नववर्ष 2025  

लेखक : वेदव्यास

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार हैं

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तीन सौ पैंसठ दिन

मैं तो एक शुभकामना हूं

मेरी स्मृतियां

अकाल और सुकाल में

युद्ध और शांति में

संघर्ष और मुक्ति में

एक साथ घूमती हैं।

मुझे तुमसे वह सब लेना है

मुझे तुम्हें वह सब देना है

जो अकाल

प्रकृति से लेता है,

और बीज

पेड़ को देता है।

मेरे शब्द

कोई अहसान नहीं हैं

मेरे अर्थ

कोई पहचान नहीं हैं

यदि मेरे विचार

तुम्हारे सहयात्री हैं

तो मेरा नाम

तुम्हारा ही जयघोष है।

जन्म और मृत्यु के बीच

जो भी मनुष्य के पास है

वह केवल उसका विश्वास है

तुम लहर की तरह

सागर में बहो, और

नगारे पर डंके की तरह बजो

ये नई तारीख, एक दिन

धनुष का बाण अवश्य बनेगी।