लिंगायत समुदाय आरक्षण के लिए फिर सड़कों पर : लोकपाल सेठी
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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दक्षिण के राज्य कर्नाटक में लिंगायत समुदाय पिछले तीन दशकों से अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल होकर आरक्षण पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। राज्य में दो बड़े दल  कांग्रेस और बीजेपी सत्ता में आने से पहले इस समुदाय से वायदा करते रहे हैं कि सत्ता में आने के बाद वे इस  वायदे को पूरा नहीं करेंगे।     आरक्षण का यह  मामला कर्नाटक हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम  कोर्ट तक भी पहुँच चुका है। 

राज्य में विधानसभा का एक सत्र मराठी बहुल इलाके के केंद्र बेलगवी में भी होता है। हाल ही में इसके यहाँ  हुए सत्र के दौरान  इस समुदाय के लोग बड़ी संख्या में सडकों पर उतर आये। यह भीड़ हिंसक हो गई तथा पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करने तक की नौबत आ गई। विधानसभा में भी यह मामला उठाया गया। मुख्यमंत्री सिद्धारामिया ने यह वायदा किया कि राज्य की कांग्रेस सरकार लिंगायत समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने का हर संभव प्रयास करेगी। लिंगायत समुदाय की भावनायों का अनुमान इसी से लगाया जा सकता हैं कि इस समुदाय के सभी बड़े संत और महंत इस बार बेलगवी में हुए प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे। 

राज्य  में इस समुदाय की संख्या 16 प्रतिशत के आस पास है लेकिन इसका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव  इसकी संख्या बल से  कहीं अधिक है। एक  समय था  जब यह समुदाय पूरी तरह  से कांग्रेस के साथ था। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने जब यहाँ अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री वीरेन्द्र पाटिल को रातों रात  चलता  कर दिया तो  लिंगायत समुदाय के लोग कांग्रेस  पार्टी से  इतना  नाराज़ हो गए  कि उन्होंने पहले बीजेपी का साथ देना शुरू किया और फिर पूरी तरह से इस भगवा पार्टी के साथ हो गए। 

वीरेन्द्र  पाटिल   इस समुदाय के सबसे बड़े नेता थे। उससे पहले  भी कांग्रेस  पार्टी में इस समुदाय का वर्चस्व  रहा है . इसके  घटना के बाद बीजेपी के  येदियुरप्पा  इस समुदाय के बड़े नेता बन  गए। इसके चलते दक्षिण  किसी  राज्य में पहली  बार बीजेपी सत्ता में। येदियुरप्पा   चार बार राज्य के मुख्यमंत्री  बने। पिछले विधान सभा चुनावों से दो  वर्ष  पहले पार्टी ने उनको  अपना पद छोड़ने के लिए कहा। इसके स्थान पर बसवराज   बोम्मई  को पार्टी ने मुख्यमंत्री का पद सौंपा। वे भी इसी समुदाय से आते है तथा इस समय केंद्र में मंत्री हैं। उनको कहा गया कि वे जल्दी ही ऐसा कोई रास्ता निकालें जिससे  लिंगायत समुदाय  को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ मिल सके। कानूनी रूप से जब तक अन्य  पिछड़ा वर्ग आयोग  तब तक किसी वर्ग को  इसमें शामिल  करने की सिफारिश नहीं करता तब तक ऐसा  संभव नहीं  हो सकता। लेकिन बोम्मई सरकार ने पतली  गली से लिंगायत  समुदाय को आरक्षण  देने  का निर्णय किया। 

राज्य में पिछड़ा वर्ग को दो श्रेणियों में ए और बी में बांटा गया। ए वर्ग में 102 समुदाय आते  है और उनको आरक्षण का सर्वाधिक लाभ मिल रहा है। बी वर्ग  में  शामिल समुदाय को कम आरक्षण मिल रहा है। कांग्रेस शासन काल में ए वर्ग में मुस्लिम समुदाय को भी 4 प्रतिशत का लाभ मिल रहा था। बोम्मई सरकार ने सी और डी दो अन्य वर्ग बनाये। वर्ग ए का 4 प्रतिशत हिस्सा इन दो वर्गों सी और डी  में शामिल कर दिया। मुस्लिम समुदाय को ए वर्ग से निकाल कर सी और डी में डाल  दिया  गया। इससे ए वर्ग में 4 प्रतिशत और आरक्षण देने का रास्ता साफ़ हो गया। 

बोम्मई सरकार ने  इस 4 प्रतिशत में 2 प्रतिशत आरक्षण लिंगायत समुदाय को दे दिया और 2 प्रतिशत ही अन्य समुदाय वोक्कालिंगा को दे दिया। जब इसको हाई कोर्ट बाद में सुप्रीम कोर्ट में इसको चुनौती दी गई तो सरकार में ने कहा कि वह इस निर्णय को तब तक लागू नहीं करेगी जब तक मामला कोर्ट में लंबित है। राज्य में लिंगायत समुदाय के बाद वोक्कालिंगा समुदाय सबसे अधिक प्रभावी है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौडा इसी समुदाय से है। उनकी पार्टी जनता दल (एस) के अधिकतर लोग इसी समुदाय से आते है। 2023 का राज्य विधान सभा का चुनाव बीजेपी और जनता दल (स) ने मिलकर लड़ा था। इस गठबंधन को ध्यान में रख कर ही पिछले बीजेपी सरकार ने वोक्कालिंगा समुदाय को सभी अन्य पिछड़ा वर का लाभ देने का निर्णय  किया था। लेकिन आरक्षण के इस प्रस्ताव का लाभ गठबंधन को नहीं मिला और राज्य में कांग्रेस  सत्ता में आने में सफल रही। अब देखना यह है कि सिद्धारामिया किस प्रकार  इन दोनों समुदायों को आरक्षण का लाभ  दे पाएंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)