भारतीय लोकतंत्र के चार मुख्य स्तंभ है कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, और पत्रकारिता जिसे प्रेस और समाचार कहा जाता है, औपचारिक रूप से इसे राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा नहीं माना गया है पर समाज व देश पर मीडिया का अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है ।कार्यपालिका अगर अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं करती है तो न्यायपालिका का दखलअपेक्षित है। भारत में लोकतंत्र की जो दशा है उसे आम आदमी व्यथीत है, लेकिन विवश है । कार्यपालिका के सांसदों का कोई ईमान धर्म नहीं रह गया है।
मीडिया वैसे ही बिका हुआ है किसी एक ही पक्ष का गुणगान करने में लगा रहता है। अब न्यायपालिका पर भी सवाल उठ चुका है दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले से नोटों के जले बंडल मिलने से न्यायपालिका की कार्य शैली भी संदेह के दायरे में आ गई है, जब रक्षक ही भक्षक बन जाएंगे व न्यायपालिका ही ईमानदार नहीं रहेगी तो आम आदमी अपनी फरियाद लेकर कहां जाएगा। जस्टिस यशवंत वर्मा की सच्चाई को जल्द से जल्द आम आदमी के सामने लाया जाए व उचित कार्रवाई की जाए ताकि न्यायपालिका पर भरोसा कर सके और उसे राहत मिल सके।
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।